The Diplomat movie Review : हम सभी ने कभी न कभी शिकायत की होगी कि बॉलीवुड सिर्फ एक्शन और रोमांटिक कॉमेडी फिल्में बनाता है। अधिकतर एक्शन फिल्में इल्लॉजिकल होती हैं और रोमांटिक कॉमेडी में वही घिसे-पिटे फॉर्मूले दोहराए जाते हैं। कुछ समय पहले सिनेमैटिक यूनिवर्स का ट्रेंड था, अब हॉरर कॉमेडी का दौर चल रहा है। लेकिन इनके बीच कभी-कभी ऐसी फिल्में बनती हैं, जिन पर विश्वास करना मुश्किल होता है कि वे बॉलीवुड से आई हैं—रियलिस्टिक, अंडरस्टेटेड और बिना किसी ओवर-द-टॉप हीरोइज्म के।

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थिएटर का हाल:
ऐसी फिल्मों के साथ सबसे बड़ी समस्या यही होती है कि थिएटर खाली रहते हैं। मैं रिलीज के दूसरे दिन सुबह 10-11 बजे शो देखने गया। कोई दर्शक नहीं था, मुझे छह टिकट खरीदनी पड़ी ताकि शो चालू हो सके। अंदर जाने पर सिनेमाहॉल तो छोड़िए, बाहर का कैफेटेरिया भी बंद था। यह किसी हॉरर फिल्म का परफेक्ट सेटअप लग रहा था।
फिल्म की शुरुआत:
फिल्म ‘द डिप्लोमेट’ जॉन अब्राहम द्वारा प्रोड्यूस और अभिनीत है। मुझे इसके बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी, शायद ट्रेलर भी नहीं देखा था। लेकिन पहला शॉट देखकर ही लगा कि कुछ नया देखने को मिलेगा। हालांकि, फिल्म शुरू होने से पहले 2 मिनट का लंबा डिस्क्लेमर था, जो बहुत लंबा महसूस हुआ।
कहानी का सार:
फिल्म पूरी तरह पाकिस्तान में सेट है और एक भारतीय महिला के इर्द-गिर्द घूमती है, जिसे जबरन वहां रखा गया था। कहानी में कई परतें हैं—क्या वह सच बोल रही है? क्या वह पाकिस्तान की एजेंट है? या फिर भारतीय एजेंट जो वहां से निकलना चाहती है? इंडियन एंबेसी में पहुंचने के बाद भी मामला हल्का नहीं होता, क्योंकि इसमें गवर्नमेंट, लीगल सिस्टम, ISI और हथियारबंद गुंडे शामिल हो जाते हैं।
जॉन अब्राहम का अभिनय:
जॉन अब्राहम की तारीफ करनी पड़ेगी कि उन्होंने ऐसी फिल्म बनाई। उनके किरदार में कोई हीरोइज्म नहीं है—न कोई बंदूक, न फाइटिंग, बस डिप्लोमेसी। फिल्म का नाम ‘द डिप्लोमेट’ है, जो बताता है कि असल भूमिका किसकी थी।
सादिया खातिब का शानदार अभिनय:
फिल्म में उजमा अहमद का किरदार निभाने वाली सादिया खातिब ने बेहतरीन अभिनय किया है। उनके एक्सप्रेशंस और बॉडी लैंग्वेज से किरदार का दर्द साफ झलकता है। फिल्म में छोटे-छोटे डिटेल्स पर भी ध्यान दिया गया है, जैसे चेहरे के जख्म और बम ब्लास्ट के सीन में जॉन अब्राहम के चेहरे पर हल्की चोट।
फिल्म की खासियत:
फिल्म में टेंशन बिल्ड करने का तरीका गजब है। बड़े एक्शन सीक्वेंसेस, वीएफएक्स, या गोलियों की जरूरत नहीं होती—बस सिचुएशन ही इतनी इंटेंस है कि दर्शक अंत तक बंधा रहता है। सबसे बड़ा सवाल यही बना रहता है—क्या वह महिला वापस आ पाएगी या नहीं?
देशभक्ति के नाम पर ड्रामा नहीं:
भारत-पाकिस्तान पर बनी फिल्मों में अक्सर जोश से भरे देशभक्ति वाले डायलॉग डाले जाते हैं, लेकिन यहां ऐसा कुछ नहीं है। फिल्म पूरी तरह कंट्रोल में रहती है, जो इसे और प्रभावी बनाती है।
डायरेक्टर और राइटर की तारीफ:
डायरेक्टर शिवम नायर और राइटर रितेश शाह ने फिल्म को बड़ी बारीकी से लिखा और डायरेक्ट किया है। कहानी को असरदार बनाने के लिए छोटे-छोटे डायलॉग्स और सीन्स का जबरदस्त इस्तेमाल किया गया है।
फिल्म की सिनेमैटोग्राफी और स्क्रीनप्ले:
फिल्म की सिनेमैटोग्राफी शानदार है और स्क्रीनप्ले बहुत टाइट। कोई भी गाना नहीं है, जिससे कहानी का फ्लो बिना बाधा के आगे बढ़ता है।
निष्कर्ष:
फिल्म परफेक्ट नहीं है, लेकिन इसे बनाना ही अपने आप में एक बहुत बड़ी उपलब्धि है। अगर आप इस वीकेंड एक अच्छी फिल्म देखना चाहते हैं, तो ‘द डिप्लोमेट’ को जरूर ट्राई करें। और अगर देख ली है, तो अपने विचार कमेंट में बताएं।
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